" सागर तरंग " माझ्या कविता
Thursday, February 14, 2008
का अधर तुझे हे थरथरले ...
प्रेमधारांत चिंब भिजवुनि मजला
का नयन तुझे हे लाजले....
ओढ याच दिसाची तुजला
का अधर तुझे हे थरथरले ...
- सागर
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